बिहार के छोटे से गाँव के रहने वाले आदर्श आंनद ने मेहनत के बदौलत कला के क्षेत्र में बनाई पहचान

बिहार के भागलपुर से आने वाले आदर्श आनंद कला के क्षेत्र में आज सफलता की नई कहानी गढ़ रहे हैं। आदर्श का यह सफर उतार-चढ़ाव से भरा रहा है, सीमित संसाधनों में ही आदर्श ने अपने कौशलता के दम पर सफलता के नए आयाम स्थापित किए हैं। कभी झोपड़पट्टी में रहकर कंटेंट क्रिएट करने वाले आदर्श के चाहने वालों की संख्या अब लाखों में है। आदर्श की यह कहानी कला के क्षेत्र में भविष्य संवारने वाले नए युवाओं के लिए प्रेरणा हो सकती है।

आदर्श ने वो दौर भी देखा है, जब वीडियो बनाने के लिए सड़कों के किनारे संघर्ष करते रहें। आदर्श शुरू में बच्चों के साथ मस्ती, रिक्शा वालों के साथ व महिलाओं के साथ बनाए गए कंटेंट को वीडियो शेयरिंग प्लेटफार्म टिक टॉक पर डालते रहे। धीरे-धीरे इनके वीडियो को काफी पसंद किया जाने लगा। आदर्श ने अपने नाम से यूट्यूब अकाउंट खोला, वहां उन्होंने मिमिक्री वाले वीडियो डालने लगे। यहां भी उनको सफलता मिली वीडियो को लोगों ने इतना पसंद किया कि ज़ी टीवी में होने वाले कार्यक्रम मूवी मस्ती विद मनीष पॉल में सिलेक्शन के लिए आदर्श मुंबई से बुलावा आया।

आदर्श के पिता पेशे से शिक्षक है, मां घर में ही कामों को देखती है। आदर्श फिजिक्स ऑनर्स से बीएससी कर चुके हैं। घर में दो छोटी बहन है लिहाजा आदर्श के ऊपर भी परिवार की बड़ी जवाबदेही थी। आदर्श बताते हैं, जब उन्हें एक ऑडिशन देने चंडीगढ़ जाना था, तो ट्रेन के टिकट के पैसे उनके शिक्षक ने दिए थे। हमारे समाज में पनप रहे युवाओं को शुरू से ही उदासीनता का सामना करना पड़ा है, आदर्श के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ था। बावजूद इसके आदर्श ने इन सबों को दरकिनार करते हुए अपने काम को बखूबी करते रहे, जिन का परिणाम आज पूरी दुनिया देख रही है।

बिहारी ही नहीं देश के कोने-कोने में आदर्श के चाहने वाले हैं। यूट्यूब पर आदर्श के 1.5 मिलियन यानी 15 लाख सब्सक्राइब हैं, अब इनके वीडियो को करोड़ों लोग देखते हैं। यूट्यूब पर “शीशे की उम्र…’ वाले वीडियो को रिकॉर्ड 23 मिलियन लोगों ने देखा था। सोशल मीडिया के प्रमुख प्लेटफॉर्म फेसबुक, इंस्टाग्राम पर भी आदर्श 2 मिलियन फैन फॉलोइंग के साथ लोगों के दिलों पर राज कर रहे हैं। आदर्श की इस कामयाबी पर हमें भी गर्व है।

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