पिता चलाते थे रिक्शा और बेटा पहले ही प्रयास में बना IAS अधिकारी

“खुद को कर बुलंद इतना कि हर तकदीर से पहले खुदा बंदे से खुद पूछे बता तेरी रजा क्या है” कवि मुहम्मद इकबाल के यह शब्द निसंदेह जोश का संचार करने वाले हैं। फर्श से अर्श तक का सफर तय करने वाले आईएएस गोविंद जायसवाल की कहानी संघर्षों से भरी पड़ी है। अति साधारण पृष्टभूमि से आने वाले गोविंद उत्तर प्रदेश के वाराणसी से आते हैं।

गोविंद चार भाई बहनों में सबसे छोटे हैं। पिता ने रिक्शा चलाकर गोविंद के सपनों को साकार किया। घर में बुनियादी सुख सुविधाओं के लिए उनके पिता ही एकमात्र सहारा थे। तमाम प्रतिकूल परिस्थितियों के बीच गोविंद के हौंसले बुलंद थे। वे ग्रेजुएशन की पढ़ाई खत्म करने के बाद आगे की तैयारी के लिए दिल्ली चले गए।

कोचिंग की फीस जमा करने के लिए उनके पिता ने जमीन भी बेची। रोजाना 18 से 20 घंटे पढ़ाई करने के बाद गोविंद पहली बार साल 2006 में आईएएस की परीक्षा में बैठे और उन्होंने पहले ही प्रयास में आईएएस की परीक्षा 48वीं रैंक से पास कर ली और बन गए मात्र 21 साल की उम्र में आईएएस अधिकारी।

संघर्ष का पर्याय बन चुके गोविंद ने तैयारियों के दिनों में दिल्ली में पैसे कम खर्च हो, इसके लिए खाना आधा कर दिया था और चाय पीना भी छोड़ दिया था। एक इंटरव्यू में गोविंद कहते हैं– “मैं एपीजे अब्दुल कलाम से काफी प्रभावित हूं और उन्हें अपना आदर्श मानता हूं।”

फिलहाल गोविंद दिल्ली एरिया के डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट हैं। सिविल सर्विसेज की तैयारी करने वाले युवाओं को ऐसे आईएएस अधिकारियों के कहानी से सीख लेने की जरूरत है।

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