बेगूसराय के नरेश बायोफ्लॉक तकनीक से कर रहे हैं मछली पालन, लागत से दोगुना हो रहा मुनाफा, जाने पूरा डिटेल

बेगूसराय के घाघरा पंचायत के नरेश नई तकनीक से मछली पालन कर सुर्खियों में है। वे बायोफ्लॉक व इंडोनेशियाई तकनीक से मछली पालन कर अपनी जिंदगी संवारने में जुटे हैं। नरेश के द्वारा बनाए गए मानव निर्मित तालाब में कई तरह की दुर्लभ प्रजातियां के साथ ही देशी मांगुर मछली की विलुप्त प्रजाति भी आसानी से देखने को मिल जाती है।

नरेश ने दैनिक भास्कर को बताया कि पिछले साल अगस्त में उन्होंने अपने दरवाजे की जमीन पर 18 लाख रुपए खर्च कर 9 बायोफ्लॉक कृत्रिम तारोपोलिन टैंक बनवाया। शुरुआती दिनों में जानकारी के अभाव के कारण काफी मशक्कत झेलनी पड़ी। नरेश मछली के बीज खरीदने में चूक गए जिससे खासा परेशानी हुई।

प्रतीकात्मक चित्र

नरेश बताते हैं कि किशनगढ़ से इलेक्ट्रिक ट्रेड में डिप्लोमा करने के बाद लगभग सात वर्षों तक पावर हाउस बकरी में काम किया। इसी दौरान मछली पालन की यह तकनीक यूट्यूब पर देखी। फिर किया था नरेश नौकरी छोड़ इसी धंधे में उतर गए। मुजफ्फरपुर स्थित केंद्रीय मात्यसिकी अनुसंधान केंद्र से छह दिन का ट्रेनिंग लिया।

नरेश‌ ने बताया कि 23*23 फीट के टैंक में पांच प्रजाति की मछलियों का पालन कर रहे हैं। इसमें फंगास, आंध्रा, तिलापिया, कबई और देशी मांगर जैसी प्रजाति शामिल हैं। एक टैंक में लगभग 9 विवंटल मछलियां पाली जा सकती हैं। मछली का विचरा, पानी, ऑक्सीजन, भोजन, मजदूरी आदि पर लगमग 40 हजार रुपए का खर्च गिरता हैं। छह महीने में 200 से700 ग्राम की मछलियां तैयार होकर बेचने योग्य हो जाती हैं। हमारे यहां आसानी से इसका बाजार भी उपलब्ध है। लोग थोक में इन मछलियों को खरीदकर ले जाते हैं। इससे पहली बार में लगमग एक लाख 20 हजार रुपए की इनकम हुई। इस प्रकार छह महीने में लागत से दोगुना मुनाफा हुआ।

मछलीपालन की बायोफ्लॉक तकनीक के बारे में नरेश बताते हैं कि किसान बिना तालाब की खुदाई किए ही बने बनाए टैंक में मछली पालन कर सकता है।‌ सिस्टम में बायोफ्लॉक बैक्टीरिण का उपयोग होता है, जो बैक्टीरिया मछलियों के मल्हार फालतू भोजन को प्रोटीन सेल का रुप दे देता है। मछलियों के लिए यह प्रोटीन सेल भोजन का काम करती है। उन्होंने बताया कि ठंड के दिनों में तापमान को बनाए रखना एक बड़ी चुनौती होती है। चार-पांच दिनों पर टैंक के पानी में अमोनियम एल्केनेटी, पीएच और टीडीएस रखरखाव करते रहना पड़ता है। हर सप्ताह 10 से 20 फीसद पानी बाहर निकालकर ताजा पानी भरना होता है। ठंड के दिनों में मछली कम व गर्मी के दिनों में ज्यादा बढ़ती है।

मछली पालन के लिए यहां अत्याधुनिक तकनीक से ऑक्सीजन का भी सप्लाई होता है। इन सबके अलावा 24 घंटे बिजली उपलब्ध रहे इसके लिए सोलर लाइट, इन्वर्टर, जेनरेटर और बिजली कनेक्शन का सहारा बंदोबस्त है।

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