आलोक के पिता ने जमीन बेचकर उन्हें पढ़ाया, 7वें प्रयास में आलोक ने UPSC क्रैक कर पाई सफलता

यूपीएससी निकालना उम्मीदवारों के लिए कोई आसान बात नहीं है और‌ तब जब हालात भी आप के पक्ष में नहीं हो। लेकिन कहावत है अगर ठान लें तो कोई काम असंभव नहीं। नवादा के इस शख्स की स्टोरी सुनने के बाद आप प्रेरित हो उठेंगे, जिसे पहाड़ जैसा लक्ष्य पाने के लिए विभिन्न परिस्थितियों से होकर गुजरना पड़ा। बुलंद हौसले से मुश्किलों को आसान बनाने वाले इस शख्स का नाम है आलोक रंजन। आलोक का घर बिहार के नवादा जिले में है। आलोक ने यूपीएससी एग्जाम में 346वीं रैंक हासिल की है।

आलोक की कामयाबी से माता-पिता खुशी से झूम उठे हैं। बेटे की सफलता को देख उनकी आंखें नम है। थरथराते होठ से इतना कह रहे हैं कि बेटे की पुरुषार्थ का परिणाम है सब, हम बेहद खुश हैं। इस सफलता के पीछे हताशा, निराशा, दुख, अवसाद, धैर्य और परिश्रम की लंबी कहानी है। आलोक के पिता कहते हैं कि हमने शुरू में ही यह ठान लिया था कि घर की स्थिति बद से बदतर हो जाए लेकिन किसी एक पुत्र को यूपीएससी प्रिपरेशन जरूर करवाएंगे। वे अपने पत्नी की ओर इशारा करते हुए कहते हैं कि इसने काफी तकलीफ झेली हैं।

आलोक की मां कहती है कि हम आज भी किराए के घर में है, चाहते तो घर बनवा सकते थे। हमने पैतृक जमीन का बड़ा हिस्सा इसलिए भेज दिया ताकि बेटे की भविष्य संवर जाए। बाद में जब पैसे की किल्लत हुई तो नवादा की एक कीमती जमीन को भी बेच डाला। उससे मिले पैसे बेटे की पढ़ाई में खर्च हो गए। कहानी सुनने के बाद यह समझ सकते हैं कि यह पूरे परिवार के समर्पण और त्याग का परिणाम है कि आज पूरे गांव को सेलिब्रेट करने का मौका मिला है।

खुशनुमा माहौल के बीच हेलो कहते हैं कि मां और पापा दोनों शिक्षक हैं। पांचवी तक की पढ़ाई गांव में ही पूरी की। फिर आगे की पढ़ाई के लिए नवादा गए वहां जेडीपीएस से मैट्रिक कंप्लीट की। फिर इंद्रप्रस्थ यूनिवर्सिटी, दिल्ली से इंजीनियरिंग के पढ़ाई पूरी की उसके बाद यूपीएससी की प्रिपरेशन में लग गया। यूपीएससी की तैयारी 2015 से ही कर रहा था लेकिन सफलता सातवें प्रयास में 346वीं रैंक के रूप में मिली है। पहले छह प्रयासों के नाकाम होने के बावजूद भी मां और पापा ने कभी कोई उलाहना नहीं दी बल्कि हमेशा उत्साह वर्धन किया। उसी का परिणाम है कि घर परिवार के साथ ही पूरा गांव खुश हैं।

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